Friday, December 25, 2009

पटना फिल्म फेस्टिवल का उद्घाटन

पटना फिल्म फेस्टिवल की स्मारिका का विमोचन करते हुए बाएं से प्रणय , अरुण कमल, गिरीश कसरावल्ली, श्रीप्रकाश और संजय

पहला पटना फिल्म फेस्टिवल प्रारंभ

पटना के इण्डस्टीज एसोसिएशन के सभागार में 25 दिसम्बर को अपरान्ह तीन बजे से पहला पटना फिल्म फेस्टिवल शुरू हुआ। तीन दिन तक चलने वाले इस फिल्म फेस्टिवल में 16 फिल्में दिखाई जाएंगी। जनसंस्कृति मंच और हिरावल के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस फिल्म फेस्टिवल की उद्घाटन फिल्म गुलाबी टाकीज थी। राष्टीय पुरस्कार प्राप्त इस फिल्म के निर्माता-निर्देशक प्रसिद्ध फिल्मकार गिरीश कसरावल्ली भी इस मौके पर मौजूद थे। श्री कसरावल्ली ने इस मौके पर तथा फेस्टिवल शुरू होने के पहले पत्रकारों से अपनी फिल्मों के अलावा सिनेमा परिदृश्य पर बातचीत करते हुए कहा कि मै अंग्रेजी भाषा में इसलिए फिल्में नहीं बनाता क्योंकि मेरे पात्र वंचित और हाशिए पर पड़े लोग हैं। वे न तो अंग्रेजी बोलते हैं और न ही उस वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसलिए मै उन्ही की भाषा में फिल्म बनाता हूं। मै चाहता हूं कि मेरी फिल्मों की डबिंग हिन्दी और दूसरी क्षेत्रीय भाषाओं में हो क्यांेकि मै अपने सिनेमा का मैसेज उन लोगों तक पहुंचाना चाहता हूं। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि और बालीवुड की फिल्मों से दुनिया की सही तस्वीर सामने नहीं आती। असली सचाई तो अर्थपूर्ण सिनेमा को देखने से पता चलती है। इस सिलसिले में उन्होंने इरानी सिनेमा का विशेष रूप से जिक्र्र करते हुए कहा की मीडिया ने दुनिया के लोगों के सामने इरान की एक खास इमेज प्रस्तुत की है लेकिन वहां का सिनेमा असली इरान की तस्वीर प्रस्तुत करता है। उन्हांेने जनसंस्कृति मंच द्वारा प्रतिरोध के सिनेमा के तहत देश के विभिन्न स्थानों पर फिल्म फेस्टिवल के आयोजन को सार्थक और अर्थपूर्ण फिल्मों को आम जनता तक पहुंचाने का अभिनव प्रयोग बताया।
इसके पूर्व फेस्टिवल का उद्घाटन करते हुए जनसंस्कृति मंच के महासचिव प्रणय कृष्ण ने कहा कि प्रतिरोध का सिनेमा हाशिए पर फेंक दिए गए उत्पीड़ित लोगों की पीड़ा, उसके पीछे के कारणों और प्रतिरोध की ताकत को सामने लाता है। प्रतिरोध के सिनेमा का आन्दोलन आज दुनिया भर में चल रहे स्थानीय जनता के भूमण्डलीकरण, निजीकरण और उदारीकरण के खिलाफ आन्दोलनों को ताकत देने का काम कर रहा है। आज भले ही भारत में सत्ता की तमाम पार्टियां उदारीकरण की नीतियों को लागू कर रही हैं लेकिन बगैर किसी झण्डा, बैनर के भी देश भर में भूमण्डलीेकरण का दंश झेल रहे आदिवासी, किसान, मजदूर उसके खिलाफ बहादुरी से लड़ रहे हैं। इन आन्दोलनों को एक सूत्र में पिरोना ही आज की प्रतिरोध की ताकतों का मुख्य कार्यभार है। सिनेमा आन्दोलन अगर इसमें मदद करेगा तो बदलाव और व्यवस्था परिवर्तन की ताकतें मजबूत होंगी। उद्घाटन कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि अरूण कमल ने की। अतिथियांे का स्वागत प्रो नवल किशोर चैधरी ने किया। इस मौके पर फिल्मकार अरविन्द सिन्हा, श्रीप्रकाश आदि उपस्थित थे। जनसंस्कृति मंच के द ग्रुप केे संयोजक फिल्मकार संजय जोशी ने बताया कि प्रतिरोध के सिनेमा पर पटना में आयोजित होने वाला फिल्म फेस्टिवल 12वां फिल्म फेस्टिवल है। हम ये आयोजन किसी कारपोरेट हाउस या पूंजीपतियों के पंैसे से नहीं बल्कि जनता की ताकत के भरोसे कर रहे हैं।उद्घाटन फिल्म गुलाबी टाकीज अपनी दुर्दिन में भी जिजीविषा बनाए रखने वाली एक महिला के वर्तमान अनुभव को परिकथा के अंदाज वाले सिनेमाई रूप में पेश करने के लिए गिरीश कसरावल्ली ने बहुचर्चित कलाकार वैदेही की एक लघुकथा के रूपान्तरण को आधार बनाया है।

Tuesday, December 15, 2009

मानवाधिकार दिवस पर गोरखपुर में फिल्म शो

मानवाधिकार दिवस पर पूर्वांचल में भुखमरी पर बनी डाक्यूमेन्ट्री दिखाई गई
गोरखपुर। डाक्यूमेन्ट्री फिल्म एनआदर आस्पेक्ट आफ इंडिया राइजिंग-डेथ बाई स्टारवेशन, गोरखपुर, कुशीनगर सहित कई जिलों में भुखमरी से मौतों के कारणों की जांच-पड़ताल करने वाली फिल्म है। यह फिल्म गरीबों तक सरकारी योजनाओं की पहुंचाने में सरकारी विफलता और शासन-प्रशासन की असंवेदनशीलता को सामने लाती है।मानवाधिकार दिवस पर प्रेस क्लब सभागार में गुरूवार की शाम इस फिल्म का शो हुआ। यह आयोजन गोरखपुर फिल्म सोसाइटी ने किया था। इस फिल्म को सच्चिदानंद मिश्र और विजय प्रकाश मौर्य ने बनाया है। ये दोनों युवक देवरिया जिले के रहने वाले हैं। पौन घंटे की इस फिल्म में नगीना मुसहर, शिवनाथ मुसहर से लेकर भिखारी, नारायण, पूजा, सोनू, विनोद गौड़, विकाउ चैहान, भीखी मल्लाह, तेजू निषाद सहित कुपोषण और भूख से मरे 22 व्यक्तियों के परिजनों, ग्रामीणों तथा भूख से हुई मौतों को कवर करने वाले पत्रकारों से बातचीत व साक्षात्कार तथा दस्तावेजों के अध्ययन पर आधारित इस फिल्म के कई दृश्य बहुत ही मार्मिक बन पड़े हैं। फिल्म के एक दृश्य में अपने पति और बच्चे को खो देने वाली महिला कहती है कि अपने बच्चों को भूख से बचाने के लिए किसके सामने हाथ पसारे ? यह एक दिन की बात तो नहीं है। यह तो रोज-रोज का है। इसी तरह एक दृश्य में भूख से मर गए दो बच्चों का पिता मीडिया कर्मियों को देखते ही गाली देने लगता है और कहता है कि उसकी रोज फोटो ली जा रही है लेकिन मदद के लिए कोई आगे नहीं आ रहा है। फिल्म का शो शुरू होने के पहले गोरखपुर फिल्म सोसाइटी के संयोजक मनोज कुमार सिंह ने फिल्म और इसके निर्माता-निर्देशक सच्चिदानंद मिश्र व विजय प्रकाश मौर्य के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि गोरखपुर-बस्ती मण्डल के सात जिलों में वर्ष 2004 से अब तक भुखमरी से 70 से अधिक मामले आ चुके हैं लेकिन सरकार-प्रशासन ने एक भी मौत को स्वीकार नहीं किया है। यह फिल्म भुखमरी के कारणों की न केवल जांच-पड़ताल करती है बल्कि ग्रामीण गरीबों को जिंदा रहने के जद्दोजेहद को सामने लाते हुए सरकार की लफफाजी का पर्दाफाश करती है। फिल्म के प्रोड्यूसर और निर्देशक सच्चिदानंद ने फिल्म निर्माण से जुड़े अनुभवों की चर्चा करते हुए कहा कि उन्हें इसे बनाने में आठ महीने लगे और उन्हें उम्मीद है कि यह फिल्म लोगों को इस संवेदनशील मुद्दे पर झकझोरने का काम करेगी। इस मौके पर राजा राम चैधरी, कथाकार रवि राय, आसिफ सईद, आरिफ अजीज लेनिन, रामू सिद्धार्थ, नितेन अग्रवाल, अशोक चैधरी, मनीष चैबे, बैजनाथ मिश्र, सुधीर, मनोज सिंह एडवोकेट आदि उपस्थित थे।

मनोज